IGAS Festival – इगास उत्सव कब और क्यों मनाया जाता है?

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IGAS Festival Uttarakhand - इगास उत्सव

इगास त्यौहार या इगास बग्वाल पर्व (igas festival) उत्तराखंड का प्रमुख लोकपर्व है जिसे सभी उत्तराखंडवासी बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं. इगास बग्वाल दीपावली के ठीक 11 दिन बाद मनाई जाती है. इस वर्ष गढ़वाल में igas festival 4 नवंबर, 2022 को मनाया जाएगा.  

इगास का अर्थ क्या है? – Meaning of Igas Festival

गढ़वाली भाषा में इगास का अर्थ होता है: एकादशी और बग्वाल का अर्थ होता है: दीपावली. अतः igas festival कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है इसलिए उत्तराखंड की लोकभाषा में इस पर्व को ‘इगास बग्वाल’ कहा जाता है. गढ़वाल में इगास बग्वाल को ‘बूढ़ी दिवाली’ के नाम से भी जाना जाता है. इगास बग्वाल उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है.

Igas Festival क्यों मनाया जाता है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीरामचंद्र जी 14 वर्ष के वनवास और लंकापति रावण का वध करने के पश्चात् जब अयोध्या वापस लौटे थे तब सभी अयोध्यावासियों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था और दीपावली मनाई थी.

लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में श्रीराम जी के लौटने की सूचना दीपवाली के 11 दिन बाद यानि कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी. इसलिए ग्रामीणों ने अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपवाली का उत्सव मनाया.

इगास बग्वाल को मनाने की दूसरी मान्यता वीर भढ़ माधो सिंह भंडारी से जुड़ी है. वीर माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महापतिशाह की सेना के सेनापति थे.

लगभग 400 वर्ष पूर्व राजा ने वीर भढ़ माधो सिंह को सेना सहित तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा. इसी बीच दीपावली का त्यौहार भी था लेकिन माधो सिंह और उनकी सेना दीपावली तक घर वापस नहीं पहुंचे थे और न ही उनकी कोई सूचना पहुंची.

गांव के लोगों ने यह सोचा कि माधो सिंह व उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गये हैं. इसलिए किसी ने भी दीपावली नहीं मनाई. कहा जाता है कि दीपावली के 11 दिन बाद वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दीपावली के ठीक 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी सेना सहित अपने घर पहुंचे थे, इसी खुशी में पूरे ग्रामीण क्षेत्र में दीपावाली मनाई गई थी. तभी से गढ़वाल क्षेत्र में इगास बग्वाल का पर्व मनाया जाता है.

इगास बग्वाल कैसे मनाई जाती है?

मुख्य दीपावली की ही तरह इगास दीपावली पर भी सभी लोग अपने घरों में साफ़-सफाई करते हैं, दीपक जलाते है, भैलो खेलते हैं. इस दिन लोकनृत्य व लोक कलाओं का प्रदर्शन भी किया जाता है. कुछ क्षेत्रों में तो इस दौरान पांडव नृत्य की प्रस्तुति भी दी जाती है. इस दिन पारंपरिक पकवान में ख़ास तौर से पूड़ी, उड़द दाल के पकौड़े और स्वाले बनाए जाते हैं. इस दिन को घर के कोठारों को अनाजों से भरने का शुभ दिन माना जाता है.

इगास पर्व पर यानि हरिबोधनी एकादशी पर श्रीहरि विष्णु चार माह बाद शयनावस्था से जागृत होते हैं इसलिए इस दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है. भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी के पूजन से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है.

इस दिन पहाड़ों में गौ पूजन का भी विशेष महत्व माना गया है. गाय को तिलक लगाकर गाय के गले में फूलों की माला चढ़ाई जाती है और अच्छा पिंड तैयार करके खिलाया जाता है.

इगास बग्वाल के दिन पहाड़ में आतिशबाजी की बजाय भैलो खेलने की परंपरा है. चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से भैलो को तैयार किया जाता है. रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है. इसके बाद गांव के ऊँचे स्थान पर पहुंचकर गांववासी भैलो को आग लगाते हैं.

इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं. इसी को भैलो खेलना कहा जाता है. पहाड़ में बग्वाल के दिन भैलो खेलना मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है. जहां चीड़ के जंगल नहीं पाए जाते हैं वहां के लोग देवदार, भीमल व हींसर आदि की लकड़ियों से भैलो बनाकर खेलते हैं.

सभी गढ़वाली भाई-बहनों को इगास बग्वाल पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

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