बसंत पंचमी कब और क्यों मनाई जाती है? – 2022

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बसंत पंचमी कब और क्यों मनाई जाती है?

बसंत पंचमी का पर्व हर साल पूरे भारत के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश और कई अन्य राष्ट्रों में भी बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि बसंत पंचमी कब और क्यों मनाई जाती है?

बसंत पंचमी कब मनाई जाती है?              

हिन्दू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष बसंत पंचमी का पर्व 5 फ़रवरी 2022 को मनाया जाएगा. इस दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है. शास्त्रों के अनुसार यह दिन बुद्धि, विद्या, ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित है.

हमारे भारतवर्ष में पूरे साल को छः ऋतुओं में बांटा गया है. बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु. बसंत ऋतु में न तो बहुत अधिक ठंड होती है और न ही बहुत अधिक गर्मी. इसी कारण बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा यानि ऋतुराज बसंत भी कहा जाता है.

बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने आज ही के दिन मां सरस्वती की रचना की थी.

ऐसी मान्यता है कि देवी सरस्वती की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से हुई थी. इसलिए बसंत पंचमी का दिन सरस्वती मां के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण मां सरस्वती संगीत की देवी तथा वेदों की माता भी कहलाती हैं.

बसंत पंचमी कैसे मनाई जाती है?

भगवान विष्णु और मां सरस्वती जी को पीला रंग अति प्रिय है इसलिए, इस पर्व पर पीले रंग का विशेष महत्व है. पीला रंग सुख-शांति का प्रतीक होता है. पीले रंग को बसंत का प्रतीक भी माना जाता है इसलिए, इस दिन लोग सुबह-सुबह स्नान करके, पीले रंग के वस्त्र पहनकर, पीले फूलों से मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं.

मां सरस्वती को पीले रंग से बनी चीज़ों या पीले मिष्ठान का भोग लगाया जाता है. उसके बाद लोग स्वयं भी पीले रंग के मीठे चावल का ही सेवन करते हैं और पतंग उड़ाते हैं.

सभी स्कूलों व शिक्षण-संस्थानों में भी आज के दिन मां सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है. पीले वस्त्र पहने व भेंट किए जाते हैं. इस दिन पुस्तक व कलम का दान करना भी शुभ माना जाता है. इस दिन सरस्वती मां की पूजा करने से कमज़ोर दिमाग के बच्चे भी कुशाग्र बुद्धि वाले हो जाते हैं.

जिन नवजात शिशुओं की यह पहली बसंत पंचमी है आज के दिन उनकी जीभ पर शहद से ‘ॐ’ लिखना चाहिए. ऐसा करने से बच्चे की वाणी मधुर होती है, साथ ही बच्चे का बौद्धिक विकास भी होता है और शिक्षा के क्षेत्र में बच्चे को सफलता प्राप्त होती है.

जो बच्चे बोलते समय तुतलाते या हकलाते हैं, उनकी जीभ पर आज के दिन सलाई की मदद से सरस्वती मंत्र लिख दीजिए. ऐसा करने से बच्चे का वाणी दोष दूर होता है.

बसंत पंचमी प्रकृति का त्यौहार है इसलिए आज के दिन प्रकृति की किसी भी चीज़ को नुक्सान न पहुंचाएं. इस दिन पेड़-पौधे काटने या छांटने का काम न करें और ना ही मांस-मदिरा का सेवन करें. इस दिन आपको केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए और सात्विक विचार ही मन में धारण करने चाहिए.

प्रकृति के श्रृंगार का उत्सव है बसंत पंचमी

बसंत पंचमी फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्यौहार है. पौष माह की कड़कड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में सरसों के पीले-पीले फूलों से भरी आच्छादित धरती की छटा देखते ही बनती है.

बसंत आते ही प्रकृति का तेज और ओज बढ़ जाता है, प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, मानव से लेकर पशु-पक्षी तक सभी जीव-जंतु उल्लास से भर जाते हैं और हर जगह खुशहाली नज़र आती है. श्वेतकमल पर विराजमान मां सरस्वती की पूजा में झूमती हुई शीतल-सुगंधित पवन जन-जीवन को एक नए उत्साह से भर देती है.

सरसों के पीले फूलों से लहलहाते खेत, आम के पेड़ पर आई सफ़ेद बौर, चारों तरफ हरियाली, मौसम में बिखरी फ़ूलों की सुगंध, परागकणों को चूमती हुई रंग-बिरंगी तितलियां, वनों में नाचते मोर, पेड़ों की शाखा पर सुर लगाती कोयल की बोली और थोड़ी गुलाबी ठंड इस मौसम को और भी ज्यादा लुभावना और खुशनुमा बना देती है मानो, ईश्वर ने स्वयं प्रकृति का श्रृंगार किया हो.

यूँ तो माघ का पवित्र महीना भी उत्साह देने वाला होता है किंतु बसंत के महीने की बात ही निराली है. बसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है.

बसंत पंचमी का महत्व

भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि ”ऋतुओं में मैं बसंत हूँ”. इस कथन से ही इस पर्व का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. बसंत प्रेम की ऋतु है और सरस्वती की आराधना की भी.

इस पर्व को भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जैसे- बसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, वागीश्वरी जयंती, बसंत उत्सव, रति काम महोत्सव आदि.

जीवन में सफल होने के लिए हमें वाणी पर नियंत्रण, तेज बुद्धि, कला और ज्ञान की आवश्यकता होती है और यह वरदान हमें मां सरस्वती के आशीर्वाद से ही मिलता है.

मां सरस्वती ज्ञान व प्रेम की देवी हैं और सुंदरता की साम्राज्ञी भी हैं. कमल पुष्प पर विराजित देवी सरस्वती यही संदेश देती हैं कि यह पृथ्वी बहुत सुंदर है और प्रेम बांटने के लिए है. प्रेम और बसंत, दोनों ही बड़े रसीले उत्सव हैं. प्रेम एक कविता है, तो बसंत संपूर्ण महाकाव्य है.

देवी सरस्वती को बहुत ही शांत और निर्मल स्वभाव वाली माना जाता है. इसलिए आज के दिन अपने गुस्से पर काबू और अपनी वाणी पर सयंम बनाए रखना चाहिए.

अल्पबुद्धि को भी बुद्धिमान बनाती हैं मां सरस्वती

सनातन धर्म में मां सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है. मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने से अल्प बुद्धि लोग भी महान विद्वान बन जाते हैं. उनके भक्तों में से तीन ऐसे महान भक्त हुए हैं जिन पर सरस्वती की कृपा होने के कारण अल्पबुद्धि होने के बावजूद भी वे महान विद्वान बने.

  • विद्वानों की श्रेणी में वरिष्ठ क्रम में आने वाले महाकवि कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि थे. मां सरस्वती की कृपा से उन्होंने संस्कृत की सबसे प्रसिद्द रचना ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और सर्वश्रेष्ट रचना ‘मेघदूतम्’ की रचना की थी.
  • वरदराज या वरदराजाचार्य देवी सरस्वती की कृपा से ही ‘संस्कृत व्याकरण’ के महापंडित बने.
  • व्याकरण के प्रसिद्द ग्रंथ ‘मुग्धबोध’ के रचयिता वोपदेव जी यादव राजाओं के दरबार के मान्य विद्वान थे. सरस्वती मां की कृपा से वह एक महान कवि, वैद्य और वैयाकरण ग्रंथकार बने.

कलाकारों के लिए सरस्वती पूजन का है ख़ास महत्व

श्रृष्टि के सबसे बड़े वैज्ञानिक कहे जाने वाले ब्रह्मदेव ने मानव कल्याण हेतु बुद्धि, ज्ञान और विवेक की जननी माता सरस्वती को अपने मुख से उत्पन्न किया था.

सरस्वती मां के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में स्फटिक माला और चौथे में वर मुद्रा होती है. देवी सरस्वती के श्वेत वस्त्र शांति, उमंग, जोश, ताजगी व कोमलता के प्रतीक हैं. सरस्वती के हाथ में माला जप और ध्यान का प्रतीक है और देवी का वाहन सफ़ेद हंस विवेक का प्रतीक माना जाता है.

इस दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है अतः, आज ही के दिन से माताएं अपने बच्चे को अक्षर ज्ञान आरम्भ कराने की शुरुआत करती हैं.

यह दिन विद्यार्थियों के साथ ही विद्या और ज्ञान के क्षेत्र से जुड़े लोग व संगीत में रूचि रखने वाले कलाकारों के लिए ख़ास महत्व रखता है. अतः आज के दिन सरस्वती पूजन करने से माता प्रसन्न होती हैं और विद्या-बुद्धि का वरदान देती हैं.

शिक्षा और संगीत से जुड़े लोगों को इस पर्व का सालभर इंतज़ार रहता है. चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सभी अपने दिन की शुरुआत अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की आराधना से ही करते हैं. इस दिन मां सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला और ज्ञान का वरदान माँगा जाता है.

आप भी अपने जीवन में बसंत को उतरने दीजिए और प्रेम व ज्ञान के अलौकिक प्रकाश से सबके जीवन को प्रकाशित कीजिए.

सभी पाठकगणों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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